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J-K को राज्य का दर्जा देने का मामला गरमाया, ये बड़ा कदम उठाएंगे CM उमर अब्दुल्ला!

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J-K को राज्य का दर्जा देने का मामला गरमाया, ये बड़ा कदम उठाएंगे CM उमर अब्दुल्ला!

सीएम उमर अब्दुल्ला.

जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने शनिवार को कहा कि वह राज्य और केंद्र शासित प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में अपने अनूठे अनुभव के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट के सामने राज्य का दर्जा बहाल करने के अनुरोध संबंधी याचिका में पक्षकार बनने की संभावना के बारे में जम्मू-कश्मीर के साथ-साथ दिल्ली में वरिष्ठ वकीलों से परामर्श कर रहे हैं.

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने के अनुरोध संबंधी कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है और 10 अक्टूबर को उसने केंद्र को जवाब दाखिल करने के लिए चार हफ्ते का समय दिया था.

बीजेपी के साथ गठबंधन नहीं करेंगे

वहीं उमर अब्दुल्ला ने यह भी कहा कि वह केंद्र जम्मू कश्मीर को शासित प्रदेश का राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के साथ गठबंधन नहीं करेंगे. उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी का अतीत में दूसरों द्वारा की गई गलतियों को दोहराने का कोई इरादा नहीं है. सीएम अब्दुल्ला ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में उस याचिका में पक्षकार बनने की संभावना तलाशी जा रही है, जिसमें जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल किए जाने का अनुरोध किया गया है.

बीजेपी को ईमानदार होना चाहिए

उमर अब्दुल्ला ने कहा कि यदि राज्य का दर्जा बहाल करना बीजेपी के जम्मू-कश्मीर में सत्ता में आने पर निर्भर है तो राष्ट्रीय पार्टी को ईमानदारी से ऐसा कहना चाहिए. उन्होंने कहा कि यदि लोगों के साथ यही समझौता किया जाना है, तो बीजेपी को ईमानदार होना चाहिए, क्योंकि बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में तथा संसद और सुप्रीम से किए गए अपने वादों में कभी नहीं कहा कि राज्य का दर्जा जम्मू-कश्मीर में बीजेपी के सत्ता में आने पर निर्भर है.

अब्दुल्ला ने कहा, यदि ऐसा है, तो मुझे लगता है कि बीजेपी को ईमानदार होना चाहिए, उसे हमें बताना चाहिए कि जब तक जम्मू-कश्मीर में गैर-बीजेपी सरकार है, तब तक आपको राज्य का दर्जा नहीं मिलेगा. फिर हम तय करेंगे कि हम क्या करना चाहते हैं. अब्दुल्ला ने हालांकि कहा कि बीजेपी के साथ गठबंधन का सवाल ही नहीं उठता.

जम्मू-कश्मीर को बर्बाद कर दिया

उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर 2015 में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी)-बीजेपी गठबंधन के दुष्परिणामों को अब भी झेल रहा है. मुख्यमंत्री ने कहा कि हम पहले ही देख चुके हैं कि इसने जम्मू-कश्मीर को कितना बर्बाद कर दिया. वर्ष 2015 में पीडीपी और बीजेपी के बीच एक अनावश्यक गठबंधन हुआ. हम अब भी उसके दुष्परिणाम भुगत रहे हैं. मेरा उन गलतियों को दोहराने का कोई इरादा नहीं है, जो दूसरे लोगों ने की हैं.

यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें राज्य का दर्जा बहाल करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट से कोई उम्मीद है, अब्दुल्ला ने कहा कि हमें उम्मीद रखनी चाहिए. लेकिन यह भी सही है कि कहीं न कहीं पहलगाम को राज्य का दर्जा बहाल करने से जोड़ा जा रहा है. जम्मू-कश्मीर के लोगों ने इसका समर्थन नहीं किया. हमले में शामिल कोई भी व्यक्ति जम्मू-कश्मीर का नहीं था.

याचिका में पक्षकार बनने की संभावना

सीएम अब्दुल्ला ने कहा कि मैं इसकी राजनीति में नहीं जाऊंगा. संसद में बार-बार कहा गया कि तीन चरण हैं – परिसीमन, चुनाव और राज्य का दर्जा. दो कदम उठाए जा चुके हैं, अब हमें उम्मीद है कि तीसरा भी पूरा हो जाएगा. उन्होंने कहा कि वह राज्य और केंद्र शासित प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में अपने अनूठे अनुभव के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट के सामने राज्य का दर्जा बहाल करने के अनुरोध संबंधी याचिका में पक्षकार बनने की संभावना के बारे में जम्मू-कश्मीर के साथ-साथ दिल्ली में वरिष्ठ वकीलों से परामर्श कर रहे हैं.

जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा देने का फैसला

उमर अब्दुल्ला ने कहा कि मुझे नहीं लगता कि केंद्र शासित प्रदेश होने के कारण हमें जो नुकसान हो रहे हैं, उन्हें मुझसे ज्यादा कोई और समझ सकता है. पूरे देश में मैं अकेला व्यक्ति हूं जिसे एक राज्य और एक केंद्र शासित प्रदेश का मुख्यमंत्री दोनों होने का अनुभव है. मैं इसे कागज पर लिखकर सुप्रीम कोर्ट के साथ साझा कर सकता हूं जब उन्हें जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा देने का फैसला करना होगा.

उन्होंने कहा कि हालांकि, यह मेरे वकीलों को सलाह देनी है कि क्या यह वास्तव में जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए फायदेमंद होगा. अगर ऐसा है, तो मुझे सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में पक्षकार बनने में कोई हिचकिचाहट नहीं है. इसलिए, इस पर कानूनी टीम के साथ चर्चा की जा रही है और उनकी राय के आधार पर, संभावना है कि मुख्यमंत्री के रूप में, मैं खुद को इस मामले में एक पक्षकार बना लूं.

महाधिवक्ता की नियुक्ति का अधिकार

केंद्र शासित प्रदेश में शासन की दोहरी प्रणाली में भ्रम को उजागर करते हुए सीएम अब्दुल्ला ने कहा कि उन्होंने पदभार ग्रहण करने के कुछ दिनों के भीतर ही महाधिवक्ता (एजी) की नियुक्ति कर दी थी, क्योंकि यह पद सरकार का कानूनी चेहरा है. नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के उपाध्यक्ष ने कहा कि हमने सत्ता में आने के कुछ ही दिनों के भीतर एक एजी नियुक्त कर दिया था. हमने मौजूदा एजी को पद पर बने रहने के लिए कहा था, लेकिन उन्हें कार्यालय न आने के लिए कहा गया. तकनीकी रूप से, हमारे पास एक एजी है, लेकिन उन्हें काम करने की अनुमति नहीं दी गई है.

सीएम अब्दुल्ला ने कहा कि उनका मानना है कि महाधिवक्ता की नियुक्ति का अधिकार निर्वाचित सरकार के पास है. उन्होंने कहा, एजी की अनुपस्थिति हमारे लिए अच्छी नहीं है. वह सरकार का कानूनी चेहरा हैं. लद्दाख में हाल में हुए संकट पर उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि वहां के लोगों से वादे किए गए थे लेकिन उन्हें पूरा नहीं किया गया.

लद्दाख पर क्या बोले सीएम अब्दुल्ला

उन्होंने कहा, लद्दाख में संकट अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है. वादे किए गए थे, जिन्हें पूरा नहीं किया गया और ऐसा लगता है कि यह एक प्रथा बन गई है, खासकर जम्मू-कश्मीर के मामले में. लद्दाख के लोगों को छठी अनुसूची में शामिल करने का वादा किया गया था, लेकिन उन्हें दिया नहीं गया. लद्दाख के लोगों को परेशानी में डाल दिया गया. क्या आप जम्मू-कश्मीर के लोगों को भी मुश्किल में डालना चाहते हैं? अब्दुल्ला ने कहा कि यदि वादे किए गए हैं तो उन्हें पूरा भी किया जाना चाहिए.

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