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Bhagwat Chapter One Review: भागवत चैप्टर 1 की दमदार शुरुआत, पर अंत में निकला ‘राक्षस’ का दम, जानें कैसी है ये सीरीज?

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Bhagwat Chapter One Review: भागवत चैप्टर 1 की दमदार शुरुआत, पर अंत में निकला 'राक्षस' का दम, जानें कैसी है ये सीरीज?

‘राक्षस’ बने जितेंद्र कुमार ने चौंकायाImage Credit source: सोशल मीडिया

Bhagwat Chapter One- Rakshas Review: अरशद वारसी की दहाड़ और जितेंद्र कुमार की खामोश दहशत… जब इन दो धुरंधरों की भिड़ंत एक क्राइम थ्रिलर में हो, तो जाहिर सी बात है उम्मीदों का आसमान छू लेना बनता है. Z5 पर आई फिल्म ‘भागवत चैप्टर वन: राक्षस’ को देखकर लगता है कि डायरेक्टर कबीर कौशिक ने एक जबरदस्त ‘चिलिंग आइडिया’ (रूह कंपा देने वाला) तो उठा लिया, लेकिन उसे अंजाम तक पहुंचाने में कहानी कहीं भटक गई. फिल्म की शुरुआत ऐसी है कि आप कुर्सी से हिल नहीं पाएंगे, लेकिन जैसे-जैसे ‘चैप्टर वन’ खत्म होता है, लगता है कि कहीं कुछ छूट गया.

कहानी

फिल्म की कहानी सच्ची घटनाओं से प्रेरित है और इसकी पृष्ठभूमि है उत्तर भारत का एक छोटा-सा गांव. यहां लड़कियों के गायब होने का सिलसिला शुरू होता है. इंस्पेक्टर विश्वास भागवत (अरशद वारसी), एक गुस्सैल लेकिन ईमानदार पुलिसवाला, इस केस को अपने हाथ में लेता है. भागवत खुद भी अपने अतीत के सायों से परेशान है, लेकिन वर्दी का फर्ज उसे चैन से बैठने नहीं देता.

भागवत की छानबीन शुरू होती है और जल्द ही उसे पता चलता है कि ये सिर्फ एक लड़की के गुम होने का मामला नहीं है. एक, दो, करते-करते गुमशुदा लड़कियों की संख्या 19 तक पहुंची जाती है. आगे क्या होता है? ये जानने के लिए आपको Z5 की ये फिल्म देखनी होगी.

जानें कैसी है फिल्म

शुरुआत के करीब नब्बे मिनट तक ‘भागवत चैप्टर वन- राक्षस’ आपको जबरदस्त तरीके से बांधे रखती है. कहानी सुनाने का तरीका, जहां दो अलग-अलग ट्रैक्स एक साथ चलते हैं वो अंदाज खूब कमाल करता है. डायरेक्टर कबीर कौशिक ने फिल्म को बहुत रियलिस्टिक ढंग से बनाया है. यहां न कोई ओवर-द-टॉप एक्शन है और न ही भड़कीले विज़ुअल्स. फिल्म की बनावट, छोटे शहर का माहौल और पुलिस स्टेशन की भाग-दौड़ सब कुछ असली लगता है.

फर्स्ट हाफ का दमदार निर्देशन

पहले हिस्से में कौशिक की डायरेक्शन बहुत सधी हुई लगती है. आप महसूस कर सकते हैं कि इंस्पेक्टर भागवत के संयम के नीचे एक गुस्से की आग सुलग रही है. उस छोटे से गांव में न दिखने वाले दरिंदे का खौफ छाया हुआ है. यही ‘रियलिस्टिक टेक्सचर’ पहले हाफ को बेहद मजबूत बनाता है.

कहां कमजोर पड़ जाती है फिल्म?

फिल्म का मज़ा तब किरकिरा होने लगता है, जब इसका क्लाइमेक्स नजदीक आता है. जबरदस्त बिल्डअप (तनाव) के बाद, कहानी अचानक एक कोर्टरूम सीक्वेंस की तरफ मुड़ जाती है, जो पूरे माहौल को ठंडा कर देता है. दर्शकों को उम्मीद होती है कि अब भागवत और किलर के बीच कोई जोरदार टकराव होगा, एक ऐसा फेस-ऑफ जो दिल को झकझोर दे. लेकिन इसके बजाय, फिल्म का अंत बहुत ही सपाट और धीमा महसूस होता है. ऐसा लगता है, कहानी अचानक रुक गई.

ये बात नहीं है कि हर थ्रिलर का अंत जोरदार धमाके जैसा होना चाहिए, लेकिन ‘भागवत’ जैसी कहानी के लिए कोई मोनोलॉग जरूरी था. भागवत का गुस्सा, सिस्टम से उसकी निराशा, उसके निजी दुःख… इन सब को एक दमदार क्लाइमेक्स मिलना चाहिए था. लेकिन जो हमें मिला, वो सच कहें तो अधूरा-अधूरा सा लगा. कहानी को जहां सबसे ज्यादा चमकना था, वहीं वो फीकी पड़ गई.

कैरेक्टराइजेशन में हो गई बड़ी चूक

क्लाइमेक्स के साथ-साथ फिल्म की एक और बड़ी कमी है, प्रमुख विलेन का कैरेक्टराइजेशन. कोई भी क्रिमिनल जब कोई क्राइम करता है, तब उसके पीछे कोई वजह होती है. जब फिल्म ‘भागवत चैप्टर वन: राक्षस’ अपने सबसे बड़े विलेन यानी ‘राक्षस’ की बात करती है, तब आप उम्मीद करते हैं कि वो इस सवाल का जवाब खोजेगी कि कोई इंसान इतना भयानक दानव क्यों बन गया है? पूरी फिल्म में हम तो दिख जाता है कि अपराधी ने क्या गुनाह किया है, लेकिन साथ ही हमें ये समझाने की कोशिश नहीं की जाती कि वो ऐसा क्यों बना है? यही वजह है कि इस फिल्म से हम ज्यादा समय तक कनेक्ट नहीं कर पाते.

कलाकारों ने संभाली फिल्म

अरशद वारसी अपनी बेहतरीन फॉर्म में हैं. उन्होंने इंस्पेक्टर भागवत के जरिए हमारे सामने एक गुस्सैल लेकिन ईमानदार अफसर पेश किया है. इस अफसर को सरकारी बाबूशाही की परवाह नहीं है, लेकिन इंसाफ में उसका यकीन अभी भी जिन्दा है. उनके किरदार में कोई चकाचौंध नहीं है, और यही बात उन्हें बहुत असरदार बनाती है. अरशद का भागवत बेवजह फाइट करने वाला बनावटी हीरो नहीं है. वो सिस्टम में रहकर उसे लगी अंदर और बाहर की सड़न से लड़ रहा है. उनका गुस्सा सच्चा लगता है, उनकी बेबसी दिल को छू लेती है.

जितेंद्र कुमार ने अपने ‘पंचायत’ वाली इमेज से 360 डिग्री अलग समीर (राक्षस) का किरदार निभाया है. उनकी खामोशी ही डरावनी लगती है. उन्हें चीखने-चिल्लाने या धमकाने की जरूरत नहीं पड़ती; उनका संयम ही आपको बेचैन कर देता है. हालांकि उनके किरदार की अंदरूनी दुनिया को ज्यादा लिखा नहीं गया, फिर भी ये कास्टिंग का एक समझदारी भरा फैसला था, जो पर्दे पर खूब चला. आयशा कडुसकर ने भी अपने किरदार को पूरा न्याय दिया है.

देखें या न देखें

अगर आप अरशद वारसी की सधी हुई एक्टिंग के फैन हैं और जितेंद्र कुमार की चौंकाने वाले किरदार में देखना चाहते हैं, तो ‘भागवत चैप्टर वन: राक्षस’ आपके लिए है. फिल्म की शुरुआत और पहला हाफ इतना ज़बरदस्त और रियलिस्टिक है कि आप कुर्सी से हिल नहीं पाएंगे. इंस्पेक्टर भागवत का गुस्सा और केस की रूह कंपा देने वाली कहानी 90 मिनट तक आपको बांधे रखती है. हालांकि, कमजोर क्लाइमेक्स और विलेन के अधूरे कैरेक्टराइजेशन के चलते फिल्म का सेकंड हाफ थोड़ा फीका पड़ जाता है. फिर भी, दमदार परफॉर्मेंस और ग्रिपिंग फर्स्ट हाफ के लिए इसे एक बार देखना तो बनता है. ये एक ऐसी क्राइम थ्रिलर है जो आपको निराश नहीं करेगी.

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