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वाराणसी में धनतेरस पर हुई भगवान धन्वंतरि की पूजा, लगा विशेष जड़ी-बूटियों का भोग… साल में एक बार होते हैं दर्शन

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वाराणसी में धनतेरस पर हुई भगवान धन्वंतरि की पूजा, लगा विशेष जड़ी-बूटियों का भोग... साल में एक बार होते हैं दर्शन

धन्वंतरि मंदिर में हुई विशेष पूजा

दुनियां को आयुर्वेद का वरदान देने वाले भगवान धन्वंतरि की जयंती के अवसर पर काशी के धन्वंतरि मंदिर में भगवान धन्वंतरि की अष्ट धातु की सबसे प्राचीन प्रतिमा के दर्शन के लिए श्रद्धालु उमड़ पड़े. काशी में ही भगवान धन्वन्तरि की सबसे प्राचीन प्रतिमा स्थापित है. यूं तो केरल के थ्रिसूर स्थित धन्वंतरि मंदिर, तमिलनाडु के वेल्लोर मंदिर, आंध्र प्रदेश के धन्वंतरि मंदिर और उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में भी भगवान भगवान धन्वंतरि का मंदिर हैं, लेकिन काशी में ही भगवान धन्वन्तरि की सबसे प्राचीन प्रतिमा है. जिसके दर्शन सिर्फ धनतेरस पर ही होते हैं.

वाराणसी के चौक स्थित सुड़िया इलाके में धन्वंतरि भवन में 400 साल पुरानी उनकी अनूठी अष्टधातु की मूर्ति आज धनतेरस पर सार्वजनिक रूप से दर्शन के लिए रखी गई है. रजत सिंहासन पर विराजमान लगभग ढाई फीट ऊंची और 25 किलोग्राम वजन की रत्न जड़ित मूर्ति दिव्य अनुभूति कराती है. ये 327 वां साल है जब श्रद्धालु धनतेरस पर भगवान धन्वंतरि के दर्शन कर रहे हैं. काशी में इस परम्परा को 327 साल पूरे हो गए हैं.

भगवान धन्वंतरि को चढ़ता है अनूठा भोग

आज दुनियां में चिकित्सा विज्ञान की जितनी भी शाखाएं हैं उन सबकी उत्पत्ति आयुर्वेद से हुई है. भगवान धन्वंतरि को ही आयुर्वेद का जनक माना जाता है. लिहाजा उनको लगने वाला भोग भी बाकी देवताओं को लगने वाले भोग से अलग होता है.

आयुर्वेद में इस्तेमाल होने वाली समस्त औषधियां जैसे कि ब्राहमी, अश्वगंधा, अगर, मुसली, तगर और अनेक दुर्लभ जड़ी बूटियों को भगवान धन्वंतरि को अर्पित किया गया. इन्हीं औषधियों का इस्तेमाल साल भर बनने वाली दवाइयों में किया जाता है. इस बार विशेष प्रसाद के तौर पर जिमिकंद जिसे सूरन भी कहते हैं उसके लड्डू चढ़ाए गएं.

कई लोग पहुंचे दर्शन करने

भगवान धन्वंतरि के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ धन्वंतरि मंदिर पहुंची. अपने परिवार के लिए आरोग्य का आशीर्वाद लेने के लिए पहुंचे लोगों ने भगवान धन्वंतरि से अपने परिवार के लिए आरोग्य सुःख का आशीर्वाद मांगा. भगवान धन्वंतरि जिनके एक हाथ में शंख है जिससे वो आयुर्वेद के प्रसाद का वितरण करते हैं जबकि दूसरे हाथ में कलश है जिससे अमृत रुपी औषधि छलकती है. तीसरे हाथ में जोंक है जो कि रक्त संचरण का संकेत है जबकि चौथे हाथ में चक्र है जो कि शल्य चिकित्सा का प्रतीक है.

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