पटना. और नहीं बस और नहीं… गम के प्याले अब और नहीं… यह महेन्द्र कपूर के गाए गए 1974 की फिल्म ‘रोटी कपड़ा और मकान’ का एक लोकप्रिय गीत है. इस गाने के बोल एक ऐसे व्यक्ति के दर्द को बताता है जो आगे और दुख बर्दाश्त नहीं कर सकता और इस भावना को व्यक्त करने के लिए शख्स अलग-अलग तरीके अपनाता है. इसी को इंगित करते हुए बिहार की राजनीति में एक तस्वीर इन दिनों गहरी कहानी कह रही है. इस तस्वीर में तेज प्रताप यादव बिहार चुनाव के लिए महुआ विधानसभा सीट पर अपने नामांकन के दौरान मंच पर खड़े हैं… सफेद कुर्ता-पायजामा पहने, कंधे पर भगवा दुपट्टा डाले हुए और हाथों में अपनी दादी मरछिया देवी की तस्वीर थामे! चारों ओर समर्थकों का हुजूम है, झंडे लहरा रहे हैं, नारों की गूंज है, लेकिन इस दृश्य में सबसे बड़ा संदेश उस तस्वीर में छिपा है जिसे तेज प्रताप ने सीने से लगाकर रखा है. यह तस्वीर केवल एक नामांकन का प्रतीक नहीं है; यह उस राजनीतिक यात्रा के आरंभ की कहानी कह रही है जिसमें लालू परिवार के दो बेटों और दो सगे भाइयों के रास्ते अब समानांतर नहीं रहे और दोनों के बीच के फासले साफ-साफ दिखने लगे हैं.
सियासी तस्वीर में छिपा बड़ा संकेत
16 अक्टूबर को महुआ विधानसभा से अपनी दादी स्वर्गीय मरछिया देवी की तस्वीर के साथ महुआ अनुमंडल कार्यालय हजारों समर्थकों और पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ पहुंचकर तेज प्रताप यादव ने नामांकन दाखिल किया.
दो भाइयों की दो राजनीतिक राहें
जानकारों की नजर में यह एक ऐसी रणनीति है जो उन्हें अपने छोटे भाई तेजस्वी से सियासी रूप से अलग पहचान देने में मदद कर सकती है. एक समय था जब लालू परिवार की राजनीति में तेजस्वी और तेज प्रताप एक साथ मंच साझा करते थे. लेकिन अब तस्वीरें और भाषण दोनों ही कुछ और कहानी कह रहे हैं. तेजस्वी की राजनीति आधुनिक रणनीति, गठबंधन की मजबूती और सत्ता की ओर व्यवस्थित बढ़त पर केंद्रित है. उन्होंने राष्ट्रीय जनता दल को गठबंधन राजनीति में एक स्थिर चेहरा बनाया और खुद को “मुख्यमंत्री पद के स्वाभाविक दावेदार” के रूप में स्थापित किया. इसके उलट तेज प्रताप की राजनीति प्रतीकवाद, भावनाओं और “लालू की विरासत के असली उत्तराधिकारी” की छवि गढ़ने पर केंद्रित होती दिख रही है. भगवा दुपट्टा, पारंपरिक लिबास, धार्मिक प्रतीकों और दादी की तस्वीर- ये सब उनके अभियान को एक ‘अपनी अलग राह’ का रंग दे रहे हैं.
परिवार के भीतर राजनीतिक तलवारबाजी!
बीते 25 मई को अपनी प्रेमिका अनुष्का यादव की तस्वीर वायरल होने के प्रकरण के बाद राजद से निष्कासित और लालू परिवार से बेदखल कर दिए गए तेज प्रताप यादव जहां भावनात्मक रूप से अकेले पड़ते दिख रहे हैं, वहीं लालू यादव और राबड़ी देवी के साये में पले दो भाइयों की राजनीति अब धीरे-धीरे प्रतिस्पर्धा में बदलती दिख रही है. तेजस्वी ने जहां संगठन पर पूरा नियंत्रण कर लिया है, दूसरी ओर तेज प्रताप मैदान में व्यक्तिगत करिश्मे और जनसंवाद पर भरोसा कर रहे हैं. इस तस्वीर में तेज प्रताप की गंभीर मुद्रा और समर्थकों की भीड़ बताती है कि उन्होंने जनता के बीच अपनी एक अलग पहचान बनाने की ठानी है -भले ही इसके लिए उन्हें पार्टी के ‘मेनस्ट्रीम कैंप’ से थोड़ा अलग क्यों न जाना पड़े.
महुआ में नामांकन के समय उपस्थित जन समूह से तेज प्रताप यादव ने कहा- हमारा नामांकन सिर्फ महुआ में विकास की गति को सिर्फ तेज ही नहीं करेगा, हमारा नामांकन बिहार में संपूर्ण बदलाव की आंधी लेकर आएगा. आगामी 14 नवम्बर को हमारी जीत के साथ ही राज्य में विकास की एक नई क्रांति का आगाज होगा. हमलोग मिलकर बिहार को एक बेहतर राज्य और विकसित राज्य बनाने का काम करेंगे.
बिहार की राजनीति पर पड़ेगा असर!
दरअसल, लालू परिवार में दो राहें खुलना केवल पारिवारिक कहानी नहीं, बल्कि बिहार की सियासत पर गहरा असर डाल सकता है. एक ओर तेजस्वी की नेतृत्व क्षमता गठबंधन की दिशा तय करेगी, वहीं दूसरी ओर तेज प्रताप की प्रतीकात्मक राजनीति युवा वोटर और परंपरागत समर्थकों के बीच नया समीकरण गढ़ सकती है. अगर तेज प्रताप स्वतंत्र राजनीतिक चेहरा बनकर उभरते हैं तो यह महागठबंधन (बिहार) की रणनीति पर सीधा असर डाल सकता है. विशेषकर यादव और पिछड़े वर्ग के वोट बैंक में हलचल तय मानी जा रही है.
तस्वीर में भविष्य की राजनीति का चेहरा
नामांकन के दौरान दादी की तस्वीर को थामे खड़े तेज प्रताप यादव की यह छवि एक राजनीतिक संदेश देती है कि- वे अब केवल ‘लालू के बेटे’ भर नहीं, बल्कि अपनी राजनीति के ‘स्वतंत्र किरदार’ बनना चाहते हैं. जहां तेजस्वी सत्ता की राह पर सधी चाल चल रहे हैं, वहीं तेज प्रताप भावनाओं और प्रतीकों से जनता का दिल जीतने की कोशिश कर रहे हैं. आने वाले समय में बिहार की सियासत में लालू परिवार की यही दो राहें कई बड़े समीकरणों को नया मोड़ दे सकती हैं. यह तस्वीर सिर्फ नामांकन की नहीं, बल्कि दो भाइयों के बीच सियासी फासलों की कहानी कहती है. एक रास्ता सत्ता की ओर तो दूसरा पहचान की तलाश में भावनाओं का सहारा लिए आगे बढ़ता हुआ.
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